भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई! इस्लामाबाद में क्यों बजे ढोल
पिछले कुछ दिनों से भारतीय अर्थव्यवस्था में जो हलचल मची है, उसने सिर्फ कारोबारियों को नहीं, बल्कि सरकार और आम आदमी को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।
महज 14 दिनों में 53,000 करोड़ रुपये का नुकसान… और इसी दौरान भारत के पड़ोसी मुल्क में जश्न जैसा माहौल?
आख़िर ऐसी कौन सी घटनाएं घटीं जिनका असर सीधे भारत के आर्थिक ढांचे पर पड़ा? और ये सब ऐसे वक्त पर हुआ जब वैश्विक निवेशक भारत को एक स्थिर और उभरती शक्ति के रूप में देख रहे थे।एक ओर भारत की प्रमुख कंपनियों के शेयर लगातार गिरते जा रहे हैं, वहीं विदेशी निवेशकों का रुख भी अचानक बदल गया है। उत्पादन में रुकावट, एक्सपोर्ट घटता हुआ, और वैश्विक बाज़ार में अनिश्चितता ने इस गिरावट को और तेज़ कर दिया।
इन दो हफ्तों में इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी और फार्मा सेक्टर सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
दिलचस्प बात ये है कि जब भारत इन आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है, ठीक उसी वक्त इस्लामाबाद में एक अलग ही तस्वीर देखने को मिल रही है।कुछ चैनल्स पर एंकर तालियाँ बजा रहे हैं, तो कुछ नेता इसे ‘भारत की नाकामी’ बता रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक संयोग है? या फिर कोई सोची-समझी रणनीति जिसके ज़रिए मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने की कोशिश की जा रही है?

भारत को आर्थिक झटका क्यों लगा, इसके पीछे कई परतें हैं – कच्चे तेल की कीमतों में उछाल, विदेशी निवेशकों की सतर्कता, और कुछ घरेलू नीतियों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता।लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़्यादा गौर करने वाली बात है—टाइमिंग। यही दो हफ्ते जब भारत का बाजार फिसला, उसी समय पाकिस्तान के मीडिया में अचानक भारत-विरोधी उत्साह क्यों दिखाई दिया?”
जिन्हें लगता है कि ये सिर्फ नंबर का खेल है, वो शायद नहीं समझ पा रहे कि ऐसी घटनाएं सिर्फ आंकड़ों की नहीं, सोच की लड़ाई होती हैं।
आर्थिक मोर्चे पर नुकसान उठाना एक बात है, लेकिन मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक तौर पर गिरना एक बिल्कुल अलग स्तर की चुनौती है।
और यही वजह है कि इस पर सवाल उठ रहे हैं — ये सिर्फ बाज़ार की गलती है या माहौल को ऐसा बनाया गया है.
तो क्या भारत इस आर्थिक झटके से जल्दी उबर पाएगा? और क्या पाकिस्तान की खुशी सिर्फ अस्थायी है या किसी गहरे प्रोपेगेंडा की तैयारी?
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