‘पंचायत 4’ रिव्यू: फुलेरा अब पॉलिटिक्स का अड्डा?
आज की पंचायत है – क्या राजनीति में खो गई फुलेरा की असली चमक? जी हां, बात हो रही है पंचायत सीजन 4 की, जहां गांव की वो सादगी, वो अपनापन अब राजनीति के खेल में उलझती दिख रही है। तो आइए जानते हैं जनता क्या कहती है, क्या ‘पंचायत’ अब भी दिल के करीब है या फुलेरा कुछ खो बैठा है?”सीजन 4 की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पिछला खत्म हुआ था – अभिषेक त्रिपाठी का ट्रांसफर, प्रह्लाद जी का अकेलापन और राजनीति की चक्की में पिसता फुलेरा। लेकिन इस बार पंचायत में राजनीति का तड़का कुछ ज्यादा ही तीखा है। भानु से लेकर विधायक जी तक, सबके इरादे साफ नहीं दिखते। सवाल उठता है – क्या ये बदलाव सही दिशा में है?
आ गया पंचायत का सीजन 4
सीजन 4 की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पिछला खत्म हुआ था – अभिषेक त्रिपाठी का ट्रांसफर, प्रह्लाद जी का अकेलापन और राजनीति की चक्की में पिसता फुलेरा। लेकिन इस बार पंचायत में राजनीति का तड़का कुछ ज्यादा ही तीखा है। भानु से लेकर विधायक जी तक, सबके इरादे साफ नहीं दिखते। सवाल उठता है – क्या ये बदलाव सही दिशा में है

पब्लिक का कैसा है रिएक्शन
पंचायत सीजन 4 को देखने के बाद सोशल मीडिया पर लोग अपने रिएक्शन दे रहे हैं, मगर इस बार कुछ लोगों को सीरीज में पुरानी वाली बात नहीं दिखी है। एक यूजर ने कमेंट कर लिखा, ‘पंचायत सीजन 4 ने अपना कॉमिक चार्म खो दिया है और राजनीति की और झुकाव ज्यादा है। जबकि इमोशनल पल अच्छे हैं, लेकिन सिग्नेचर ह्यूमर गायब है। कुछ बेहतरीन सीन थे, लेकिन कुल मिलाकर ये घिसा-पिटा लगा और इसमें स्पार्क की कमी थी। संभावना थी, लेकिन कमजोर।’
दूसरे यूजर ने लिखा, ‘पंचायत सीजन 4 सिर्फ एक शो नहीं है, ये सिनेमा की एक संस्था है। कहानी कहने, स्टोरीलाइन लिखने और इमोशन का एक मास्टरक्लास ये आपको हंसाता है, ये आपको रुलाता है, हर फ्रेम बोलता है। कुछ जीत खुशी नहीं लाती हैं कुछ जीत हार से ज्यादा दुख देती हैं ये सच है। यही पंचायत है।’
तीसरे यूजर ने बोला, ‘ये सीजन पंचायत चुनाव और उसके इर्द-गिर्द की राजनीति पर केंद्रित है। दमदार अभिनय और इमोशनल कहानी के साथ कैरेक्टर ग्रोथ और प्यार , लेकिन पहले की तुलना में कम कॉमेडी। शो देखने लायक है।’
एक और यूजर ने बोला, ‘मैंने हाल ही में पंचायत का सीज़न 4 देखा, और ये पिछले तीन सीजन जैसा इम्पेक्ट नहीं छोड़ पाया। ऐसा लगा कि एक्टिंग, स्टोरीलाइन और डायरेक्शन में कुछ बदलाव हुए हैं, और पहले के सीजन की सादगी गायब है।’

चुनावी रंग में डूबा फुलेरा
शो की शुरुआत धीमी होती है, लेकिन फिर धीरे-धीरे कहानी रफ्तार पकड़ लेती है। इस सीजन में बनराकस और उसके साथियों ने प्रधानजी और उनकी टीम के लोगों की नाक में दम किया हुआ है। मंजू देवी और क्रांति देवी के बीच चुनावी जंग काफी बढ़िया है और इसे देखने के में मजा भी आता है। लेकिन कुछ जगह पर आपको बोरियत होती है, इस बार कहानी में सिर्फ चुनाव की गरमा-गर्मी ही देखने को मिली है। दर्शक जिसका सबसे ज्यादा इंतजार कर रहे थे, वो था रिंकी और सचिव जी के रोमांस का, मगर उनके प्रेम की गाड़ी बस एक कदम ही आगे ही बढ़ पाई है और रोमांस तो नहीं दिखा है।