खून से भीगी गाज़ा की ज़मीन… अब भारत बना संकटमोचक
जब ज़मीन पर बारूद गिरता है, तो सिर्फ इमारतें नहीं, उम्मीदें भी टूटती हैं।और जब हर कोना खून से लाल हो जाए, तो ज़रूरत होती है एक ऐसे हाथ की… जो मदद नहीं, मरहम लेकर आए।इस बार ये हाथ बढ़ा है भारत की ओर से।एक ऐसा देश जो सिर्फ विकास की नहीं, मानवता की भाषा भी समझता है।

गाज़ा में हालात जिस तरह से बिगड़े हैं, वो किसी से छुपे नहीं हैं।लाखों लोगों के पास न छत है, न दवा, न पीने का पानी।बच्चों की आंखों में अब बचपन नहीं, डर दिखता है।इन्हीं हालातों के बीच भारत ने जो क़दम उठाया है, वो सिर्फ राजनीतिक नहीं, इंसानी जज़्बे की मिसाल है।भारत की ओर से मेडिकल सप्लाई, राहत सामग्री और ज़रूरी संसाधनों की एक बड़ी खेप तैयार की गई है — जिसे वहां तक पहुंचाने के लिए हर स्तर पर कोशिशें तेज़ कर दी गई हैं।ये सिर्फ मदद नहीं, एक संदेश है – कि चाहे सरहदें अलग हों, तकलीफ सबकी एक जैसी होती है।गाज़ा की जली हुई ज़मीन को ठंडक अब किसी गोली या बम से नहीं, इंसानियत से ही मिल सकती है।और शायद यही सोचकर भारत ने यह बीड़ा उठाया है — कि अगर दुनिया की किसी कोने में ज़ख्म हैं, तो उन्हें भरने की भी ज़िम्मेदारी साझा होनी चाहिए।सिर्फ राजनयिक बयान नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर एक्शन — यही भारत की छवि बनती जा रही है।अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या ये पहल वाकई ज़मीन पर बदलाव ला पाएगी?
गाज़ा की सड़कों पर जो आंसू बहे हैं, शायद उन तक एक भारतीय हाथ पहुंचे…तो थोड़ा सुकून वहां भी पहुंचेगा — और यहां भी।
20 लाख से ज्यादा लोगों पर संकट
बता दें कि गाजा पट्टी की 20 लाख से अधिक की फिलिस्तीनी आबादी एक भयावह मानवीय संकट से जूझ रही है और अब उस क्षेत्र में आने वाली सीमित सहायता पर मुख्य रूप से निर्भर है. बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो चुके हैं. हमास ने सात अक्टूबर 2023 को दक्षिणी इजराइल पर हमला कर दिया था, जिसमें लगभग 1,200 लोग मारे गए थे और 251 अन्य लोगों को बंधक बना लिया गया था. गाजा में इजराइल के 50 बंधक अब भी हमास के कब्जे में हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इसमें से आधे से भी कम जीवित हैं.
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इजराइल के सैन्य हमले में 59,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं. मंत्रालय का कहना है कि मृतकों में आधे से अधिक महिलाएं और बच्चे हैं.