संधि को लेकर पाक की नौटंकी जारी, भारत ने फिर सुनाई खरी-खोटी
इस्लामाबाद
हेग स्थित मध्यस्थता कोर्ट के पूरक फैसले का हवाला देकर पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत से सिंधु जल संधि का पालन करने की अपील की है। लेकिन भारत ने साफ कह दिया है कि वह इस अदालत को मान्यता नहीं देता और न ही इसके फैसलों को कोई वैधता प्राप्त है।
भारत ने दो-टूक शब्दों में कहा कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर कोर्ट का पूरक फैसला एकतरफा, निरर्थक और संधि के विरुद्ध है। भारत ने स्पष्ट किया कि वह इस कथित मध्यस्थता न्यायालय को कभी मान्यता नहीं देगा।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बार फिर वही घिसा-पिटा बयान जारी किया कि कोर्ट का फैसला इस बात का प्रमाण है कि संधि अब भी वैध है। पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने सोशल मीडिया पर भी बौखलाहट भरा बयान जारी किया और भारत पर अंतरराष्ट्रीय समझौते न मानने का आरोप लगाया।
भारत का सख्त संदेश
भारत के विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को बंद नहीं करता, तब तक सिंधु जल संधि स्थगित ही रहेगी। भारत ने यह भी कहा कि आतंकवादी हमलों के बाद एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में उसके पास यह अधिकार है कि वह किसी भी संधि पर पुनर्विचार करे।
भारत ने पाकिस्तान की चालाकी पर पानी फेरा
भारत ने साफ कहा कि कथित कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का गठन खुद संधि का उल्लंघन है। यह कोर्ट न तो वैध है, न ही इसका कोई निर्णय भारत को बाध्य कर सकता है। पाकिस्तान का यह प्रयास अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहानुभूति बटोरने और भारत को बदनाम करने की एक नाकाम कोशिश है।
क्या है सिंधु जल संधि?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी थी। इसमें भारत को तीन पूर्वी नदियों और पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों के जल उपयोग का अधिकार दिया गया। लेकिन पाकिस्तान अक्सर भारत की जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति करता रहा है। भारत का कहना है कि यह परियोजनाएं संधि का पालन करते हुए ही बनाई गई हैं।
पाकिस्तान की एक और हार
पाकिस्तान की बौखलाहट यह साबित करती है कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के सामने टिक नहीं पा रहा। भारत ने पूरी मजबूती से स्पष्ट किया है कि संधियों की वैधता तब तक नहीं मानी जा सकती जब तक सीमा पार से आतंकवाद थोपने वाले देश अपनी हरकतें न सुधारें।