क्या खरगे का बयान मर्यादा लांघ गया? जानिए पूरी कहानी!
राजनीति में जुबानी जंग कोई नई बात नहीं। लेकिन कुछ बयान ऐसे होते हैं जो सिर्फ सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि सियासी तापमान भी बढ़ा देते हैं। हाल ही में एक जनसभा के दौरान मल्लिकार्जुन खरगे ने जो कहा, उसने पूरे देश में बहस छेड़ दी।
उन्होंने कहा— “शादी करने से बच्चा होता है, घर पर सोने से नहीं…”। यह बयान सीधा पीएम मोदी की ओर इशारा करता नजर आया, और मंच से नीचे उतरते ही यह लाइन वायरल हो गई।
जिस लहज़े में यह बात कही गई, उसमें केवल शब्द नहीं थे—बल्कि एक सियासी चुभन थी। कई लोगों ने इसे तीखा कटाक्ष माना, तो कुछ ने इसे मर्यादा से परे बताया।

ये बयान उस वक्त आया जब चुनावी माहौल गरम था और हर पार्टी अपने विरोधियों पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी। लेकिन इस बार शब्दों की मार कुछ ज्यादा ही असरदार हो गई।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई—कुछ ने इसे “सच की कड़वी गोली” कहा, तो कुछ ने “बेबुनियादी निजी हमला” करार दिया।
राजनीतिक गलियारों में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस तरह की बयानबाज़ी ज़रूरी थी? क्या नेताओं को अपनी भाषा पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए, खासकर तब जब पूरा देश उन्हें देख रहा हो?
यह बयान केवल एक नेता का विचार नहीं था, यह पूरे विपक्ष की ओर से एक रणनीतिक संदेश भी माना जा रहा है—कि अब वो सीधी टक्कर के मूड में हैं, चाहे लहजा कुछ भी हो।