जातियों पर चलने वाली पार्टियां…’ SC की टिप्पणी से AIMIM में हड़कंप
आज हम भारतीय राजनीति के एक बेहद संवेदनशील और गहरे मुद्दे पर बात करने वाले हैं – धर्म और जाति के नाम पर होने वाली राजनीति। इस पर बहस एक बार फिर तेज़ हो गई है, खासकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की मांग और इस पर सुप्रीम कोर्ट की एक बेहद अहम टिप्पणी के बाद।हैदराबाद आधारित AIMIM पार्टी, जिसका नेतृत्व असदुद्दीन ओवैसी करते हैं, अक्सर अपनी ‘कट्टरपंथी’ छवि और धर्म-आधारित राजनीति के आरोपों को लेकर सुर्खियों में रहती है। अब एक बार फिर इस पार्टी के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने की मांग उठाई गई है, यह आरोप लगाते हुए कि यह पार्टी अपने नाम और कार्यप्रणाली से संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का उल्लंघन करती है।यह मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। माननीय सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में इस मुद्दे पर सुनवाई हुई, और सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जो टिप्पणी की है, वह भारतीय राजनीति के लिए दूरगामी परिणाम वाली हो सकती है।
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान में अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकारों की गारंटी दी गई है. पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है कि वह उन अधिकारों की रक्षा के लिए काम करेगी. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह समाज के हर पिछड़े वर्ग के लिए है, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पार्टी का संविधान यही कहता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी का संविधान भारत के संविधान के खिलाफ नहीं है. यह तर्क कि AIMIM किसी विशेष समुदाय के हित में काम करना चाहती है, खारिज किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को किसी विशेष दल/व्यक्ति पर आरोप लगाए बिना, सुधारों की मांग करते हुए व्यापक दायरे में नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी है.
वकील विष्णु जैन के तर्क पर कोर्ट का जवाब
वकील विष्णु जैन की तरफ से तर्क दिया गया कि वह मुसलमानों में इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देगी. एक राजनीतिक दल, जो भविष्य में सत्ता में आएगा. भेदभाव यह है कि आज अगर मैं चुनाव आयोग के सामने जाकर हिंदू नाम से पंजीकरण करवाऊं. जस्टिस कांत ने कहा कि अगर चुनाव आयोग वेदों या किसी भी चीज़ की शिक्षा पर आपत्ति जताता है, तो कृपया उचित मंच पर जाएं. कानून उसका ध्यान रखेगा. पुराने ग्रंथ, किताबें या साहित्य पढ़ने में कोई बुराई नहीं है. कानून में बिल्कुल भी कोई प्रतिबंध नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला पढ़ने की दी सलाह
कोर्ट ने वकील के सवाल पर कहा कि यह संविधान के दायरे में ही है. अगर कोई राजनीतिक पार्टी कहती है कि हम संविधान द्वारा संरक्षित बातों की शिक्षा देंगे. इस पर जैन ने कहा कि वह पार्टी कहती है कि वह मुसलमानों के बीच एकता के लिए प्रयास करेगी, सिर्फ मुसलमान ही क्यों? हम सब क्यों नहीं? जस्टिस कांत ने कहा कि यह आपको खंड 8 में मिलेगा. कृपया दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का पैरा 10 पढ़ें, जो वचन देने वाले पक्ष ने 1989 में दिया था.