पुरी में निकली आस्था की रथ यात्रा, भगवान जगन्नाथ भक्तों के बीच पहुंचे
नई दिल्ली
पुरी, ओडिशा की गलियों में एक बार फिर भक्ति, उल्लास और उत्सव का रंग बिखर गया है। भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथ यात्रा का शुभारंभ हो चुका है और पूरी नगरी इस समय श्रद्धा के महासागर में डूबी हुई है।
रथ यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा स्वयं भक्तों के बीच आते हैं। साल भर मंदिर के भीतर विराजमान रहने वाले भगवान इस दिन रथ पर सवार होकर बाहर निकलते हैं और आम जनमानस को दर्शन देते हैं।
गुंडिचा मंदिर की ओर ‘ईश्वरीय यात्रा’
तीनों देवता नंदिघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र), और दर्पदलन (सुभद्रा) नामक रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इस दौरान लाखों श्रद्धालु इन रथों की रस्सी खींचने के लिए उमड़ पड़ते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि रथ खींचने से सारे पाप मिट जाते हैं।
रथ निर्माण: हर बार नया, हर बार पवित्र
हर साल इन तीनों रथों का निर्माण नये सिरे से किया जाता है। लकड़ी से बने ये विशाल रथ पारंपरिक कारीगरों द्वारा तैयार किए जाते हैं। हर रथ की ऊंचाई, रंग और सजावट विशिष्ट होती है, जिसकी छतें रंग-बिरंगे कपड़ों से ढकी होती हैं और धार्मिक प्रतीकों से सजी होती हैं।
पुरी की सड़कों पर आस्था का सागर
जब रथ यात्रा निकलती है तो पूरी पुरी नगरी भक्ति में रंग जाती है। जयघोष, ढोल-नगाड़े, मंत्रोच्चारण और भक्तों की श्रद्धा से पूरा वातावरण ईश्वरीय हो उठता है। लोग घंटों खड़े रहकर भगवान की झलक पाने को व्याकुल रहते हैं।
एकता और समर्पण का संदेश
यह उत्सव सामाजिक एकता का प्रतीक है जहां हर जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ मिलकर भाग लेते हैं। सभी की पहचान सिर्फ एक होती है सेवक। यह हमें सिखाता है कि भक्ति में कोई भेदभाव नहीं होता।
पुरी की गलियों में इस अवसर पर पारंपरिक नृत्य जैसे ओडिसी और गोतीपुआ, भजन-कीर्तन, रंगोली और सजावट के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर को भी प्रस्तुत किया जाता है। हर कोना भगवान के स्वागत के लिए सजाया जाता है।
सुरक्षा और सेवा व्यवस्था चाक-चौबंद
लाखों की भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए प्रशासन, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाएं पूरी तरह सक्रिय रहती हैं। सीसीटीवी, मेडिकल कैंप और जल व्यवस्था हर जगह सुनिश्चित की जाती है।
‘बहुड़ा यात्रा’ और पुनर्वास का भाव
गुंडिचा मंदिर में सात दिनों तक विश्राम के बाद भगवान वापसी यात्रा करते हैं जिसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। यह चरण भी भक्तों के लिए उतना ही पावन होता है। इन सात दिनों को ‘पुनर्वास’ कहा जाता है मानो भगवान अपने ननिहाल में कुछ समय बिता रहे हों।
अब रथ यात्रा हो गई है ग्लोबल
आज सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिए यह रथ यात्रा पूरी दुनिया में देखी जा सकती है। लाखों लोग लाइव स्ट्रीमिंग से जुड़ते हैं और डिजिटल श्रद्धालु बनकर भी इस पर्व का हिस्सा बनते हैं।
भावनात्मक और आत्मिक अनुभव
रथ यात्रा सिर्फ देखने का आयोजन नहीं, बल्कि अनुभव करने का अवसर है। जब लाखों लोग “जय जगन्नाथ” का नारा लगाते हैं, जब आंखों में आंसू लेकर भक्त भगवान से संवाद करते हैं वह क्षण आत्मा तक उतर जाता है।
यह यात्रा यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति में कोई ऊंच-नीच, अमीर-गरीब नहीं होता। सभी सिर्फ “भक्त” होते हैं, और ईश्वर का रथ खींचने वाले “सेवक”। यही भावना इसे सबसे विशिष्ट और आत्मिक उत्सव बनाती है।
मन से भगवान तक का सफर
जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल ईश्वर का यह वादा दोहराती है कि अगर तुम सच्चे मन से बुलाओगे, तो मैं स्वयं तुम्हारे पास आऊंगा। यही है इस रथ यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता भक्त और भगवान के बीच की दूरी को मिटा देना।