धरती पर लौटने से पहले कैसे तय होता है स्पेस कैप्सूल का लैंडिंग स्पॉट? चौंका देगा जवाब
आज हम बात करने वाले हैं उस रोमांचक पल की, जिसका हमें बेसब्री से इंतज़ार था। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से अपनी ऐतिहासिक यात्रा पूरी कर सफलतापूर्वक धरती पर लौट आए हैं.
उनकी सुरक्षित वापसी के साथ ही एक अहम सवाल उठता है: अंतरिक्ष से लौटते समय, स्पेस कैप्सूल को धरती पर कहाँ उतरना है, यह कैसे तय होता है? और आखिर क्यों समुद्र को ही सबसे सुरक्षित लैंडिंग साइट माना जाता है? चलिए, जानते हैं इस पूरी प्रक्रिया के पीछे का विज्ञान और लॉजिक।
दरअसल मिशन की शुरुआत से ही ये तय हो जाता है कि ISS से रवाना होने वाला कैप्सूल वापसी में कहां उतरेगा. इसके लिए बहुत सटीक विज्ञान, मैथमेटिक्स और प्लानिंग होती है. इस पर एक बहुत बड़ी टीम काम करती है और मिशन को लांच करने से पहले ही इसकी सफलता और असफलता के मायनों को परख लिया जाता है. सिमुलेटेड सिस्टम पर कई बार इसकी प्रैक्टिस होती है और ये तय किया जाता है कि किसी तरह की गलती न हो. अमेरिकन स्पेस एजेंसी NASA के मुताबिक अगर आईएसएस से अलग होते समय ड्रैगन कैप्सूल में एक पल की भी देरी हुई तो लैंडिंग साइट सैकड़ों किमी दूर हो सकती है.
ऑर्बिट से एंट्री पॉइंट तक सब तय
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 28 हजार किमी की गति से धरती की परिक्रमा करता है. वैज्ञानिक पहले इसकी गणना करते हैं और ये तय करते हैं कि ISS किस समय पर कहां होगा. NASA के मुताबिक इसी के आधार पर एंट्री बर्न और डी ऑर्बिट बर्न का समय तय होता है. इसके बाद वह मिशन लांच करते हैं, जो तय समय पर वहां पहुंचता है जहां वैज्ञानिक ले जाना चाहते हैं. यही काम वापसी में भी होता है, आईएसएस के कैप्सूल से अलग होने और धरती के वायुमंडल में प्रवेश करने का समय निर्धारित होता है, यदि इसमें एक पल की भी देरी हुई तो तय लैंडिंग साइट बहुत दूर हो सकती है. इसके अलावा कैप्सूल को एक निश्चिंग एंगल में रखा जाता है, ताकि वह धरती के गुरुत्वाकर्षण से मुकाबला कर सके. नहीं तो कैप्सूल को नुकसान भी पहुंच सकता है.
पहले से प्लान होता है लैंडिंग जोन
मिशन शुरू होने से पहले ही एक मुख्य लैंडिंग जोन और बैकअप लैंडिंग जोन तय किया जाता है. अब तक जितने भी ऐसे मिशन हुए हैं उनमें 1 को छोड़कर सभी कैप्सूल समुद्र में ही उतारे गए हैं. यह इसलिए क्योंकि समुद्र को सॉफ्ट लैंडिंग के लिए बेहतर माना जाता है. लैडिंग कहां होगी इसे तय करते समय मौसम की स्थिति पर एनालिसिस की जाती है. इसमें देखा जाता है कि हवा की गति क्या रहेगी, समुद्र की लहरें कैसी रहेंगीं. बारिश या तूफान की संभावना तो नहीं है, अगर ऐसा हैं तो लैंडिंग लोकेशन बदलकर बैकअप साइट का इस्तेमाल किया जाता है.
समुद्र में ही क्यों उतरता है कैप्सूल
ISS से लौटने वाला कैप्सूल समुद्र में उतारने का सबसे बड़ा कारण इसकी सुरक्षा होती है, दरअसल जब स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करता है, तो उसकी रफ्तार बहुत तेज होती है, NASA के मुताबिक यह 28 हजार किमी प्रति घंटा तक हो सकती है. इसलिए इसे ऐसी जगह लैंड कराने का प्लान होता है जो सुनसान हो और सुरक्षित भी रहे. इसके लिए समुद्र सबेस बेहतर है. इसका पानी कैप्सून को एक कुशन प्रदान करता है. इसे धरती पर उतरते ही लगने वाला झटका महसूस नहीं होता.
समुद्र में रिकवरी मिशन आसान होता है
समुद्र में कैप्सूल को उतारना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यहां रिकवरी मिशन आसान होता है. एस्ट्रॉनाट को कैप्सूल से बाहर निकालने के लिए तुरंत टीमें एक्टिव हो जाती हैं. कैप्सूल को सबसे पहले उस शिप तक लाया जाता है जिसे स्पेशली इसके लिए तैयार किया गया है. इसके बाद इस जहाज से ही हेलीकॉप्टर के जरिए एस्ट्रॉनॉट को समुद्र से बाहर लाया जा सकता है. यह पहले से परखी हुई तकनीक है, इसलिए वैज्ञानिक इसपर ज्यादा भरोसा करते हैं. हालांकि अब तक सिर्फ एक मिशन रेगिस्तान में भी उतर चुका है. यह रूस का Soyuz था. यह मिशन भी सफल रहा था, मगर इससे मुकाबले के बाद ज्यादातर स्पेस एजेंसियों ने यही माना कि समुद्र में वापसी ज्यादा सुरक्षित है.