बिहार में महागठबंधन की ‘अगस्त क्रांति’ का असली एजेंडा क्या है?
बिहार की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज़ है। पटना की गलियों से लेकर पंचायतों तक, एक नई ‘क्रांति’ की चर्चा जोरों पर है — इसे नाम दिया गया है ‘अगस्त क्रांति’। लेकिन यह सिर्फ एक प्रतीक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक दांव है, जिसकी पटकथा महागठबंधन ने तैयार की है।
दरअसल, यह पहल ऐसे वक्त पर सामने आई है जब राज्य में सियासी अस्थिरता और जनअसंतोष बढ़ रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, और कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इन मुद्दों को लेकर जनता के बीच पैठ बनाने की कवायद में महागठबंधन ने यह अभियान छेड़ा है।
इस पूरे आंदोलन का केंद्र पटना बना हुआ है, लेकिन असर पूरे बिहार में दिखाने की कोशिश की जा रही है। जिला-जिला, गांव-गांव तक पैदल यात्राएं, जनसभाएं और रैलियों के जरिए जनता को जोड़ने की मुहिम जारी है।

मुख्य चेहरों की बात करें तो राजद, कांग्रेस, और वाम दलों के नेता इस मुहिम में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। उनके भाषणों में बार-बार 1942 की ‘असली अगस्त क्रांति’ का जिक्र हो रहा है — ताकि ऐतिहासिक भावनाओं को आज के सवालों से जोड़ा जा सके।इस रणनीति की खास बात यह है कि विपक्ष एक साझा मंच से सरकार के खिलाफ एक समन्वित हमला बोल रहा है। इसमें सिर्फ सरकार की आलोचना ही नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक विकास मॉडल की बात भी की जा रही है।
आंदोलन को आगे ले जाने के लिए सोशल मीडिया, छात्र संगठन, और किसान मंचों को भी सक्रिय किया गया है। रणनीति साफ है — जनआंदोलन की शक्ल में सियासी बदलाव की ज़मीन तैयार करना।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह अभियान 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी का शुरुआती स्वरूप है। यानी, मुद्दे भी हैं, मंच भी है और जनता को जोड़ने की कवायद भी।
लगातार नई घोषणाएं कर रहे नीतीश कुमार
एक ओर विपक्ष नीतीश कुमार सरकार पर अपने हमले तेज करता जा रहा है तो सत्तारुढ़ एनडीए भी अपनी तैयारियों में लगा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ महीनों में के अंदर 6 बार बिहार का दौरा कर चुके हैं. वहीं मुख्यमंत्री नीतीश भी अपनी सरकार को सत्ता विरोधी लहर से बचाने के लिए लगातार नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं. कल ही उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं को हर महीने वाली प्रोत्साहन राशि एक हजार रुपये से बढ़ाकर तीन हजार रुपये करने का ऐलान किया. साथ ही उन्होंने ममता स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए हर डिलिवरी पर 300 की जगह 600 रुपये दिए जाने का ऐलान किया.

यही नहीं नीतीश ने पिछले दिनों मधुबनी जिले में करीब 650 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाएं भी शुरू कीं. इससे पहले उन्होंने बिहार पत्रकार सम्मान योजना के जरिए रिटायर पत्रकारों की मासिक पेंशन में 9,000 रुपये का इजाफा करने का ऐलान किया. पहले बिहार सरकार में रजिस्टर्ड सभी पात्र रिटायर पत्रकारों को 6,000 रुपये मिलते थे और अब उन्हें 15,000 रुपये हर महीने पेंशन के रूप में दी जाएगी.
अक्टूबर-नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से चुनावी तैयारी शुरू कर दी गई है. चुनावी रैलियों का दौर भी अब जोर पकड़ने जा रहा है. अब देखने वाली बात होगी कि ‘अगस्त क्रांति’ का जिक्र कर विपक्षी दल वोटरों को अपने साथ जोड़ पाता है या नहीं. या फिर नीतीश अपनी ताबड़तोड़ घोषणाओं और पीएम मोदी के नाम पर वोटरों को अपने साथ जोड़ पाते हैं या नहीं.अब देखना यह होगा कि यह ‘क्रांति’ सत्ता के तख्त को हिला पाती है या नहीं। लेकिन इतना तय है — बिहार की राजनीति में अब एक नया अध्याय खुल चुका है।