बिहार में वोटर लिस्ट की जांच पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, जानें पूरी डिटेल
बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को लेकर एक बड़ा विवाद चल रहा था।आरोप लगे कि कुछ जगहों पर फर्जी नाम जोड़े गए हैं, तो कहीं असली वोटर्स के नाम ही काट दिए गए।इस पर राज्य सरकार ने शुरू की वोटर लिस्ट की ‘सर्जरी’, यानी डीप वेरिफिकेशन।
सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा पर रोक लगाने से किया इनकार: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची की समीक्षा (विशेष गहन पुनरीक्षण, SIR) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का निर्वहन है और निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसे यह प्रक्रिया करने से नहीं रोका जा सकता.
विपक्ष को झटका, पहचान दस्तावेजों पर कोर्ट का निर्देश: विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से स्पष्ट कहा कि पहचान के लिए आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी को दस्तावेज के तौर पर स्वीकार किया जाए.
तीन मुख्य कानूनी चुनौतियां: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीन प्रमुख सवालों की पहचान की. इसमें- क्या निर्वाचन आयोग को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करने का अधिकार है? आयोग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया कितनी उचित और पारदर्शी है? विधानसभा चुनाव (नवंबर 2025) से ठीक पहले इस प्रक्रिया का समय कितना उचित है?
अगले चरण की सुनवाई 28 जुलाई को: मामले की अगली विस्तृत सुनवाई 28 जुलाई 2025 को होगी. चुनाव आयोग को एक हफ्ते में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है और याचिकाकर्ता चाहें तो 28 जुलाई से पहले पुनः उत्तर दाखिल कर सकते हैं.
आधार कार्ड को लेकर लंबी बहस: सुनवाई के दौरान आधार कार्ड को पहचान दस्तावेज के तौर पर शामिल करने पर जोर दिया गया. याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि आधार को हटाना कानून की मंशा के खिलाफ है, जबकि आयोग ने इसे अनिवार्य दस्तावेजों में शामिल नहीं किया था.
नागरिकता जांच पर विवाद: कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि यह पूरी प्रक्रिया नागरिकता की जांच जैसा लग रहा है, जो चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र नहीं है. उनका कहना था कि नागरिकता प्रमाणन राज्य या केंद्र सरकार का काम है, न कि निर्वाचन आयोग का.
निर्वाचन आयोग का पक्ष और सफाई: आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग का उद्देश्य किसी को मतदाता सूची से हटाना नहीं है. आयोग मतदाता सूची का नियंत्रण और निगरानी करता है और कानून के अनुसार ही काम करता है.
दस्तावेजों और फॉर्म भरने की शर्तों पर बहस: कोर्ट ने कहा कि दस्तावेज मांगने और फॉर्म भरने की प्रक्रिया से अनजाने में भी मतदाताओं की चूक हो सकती है, जिससे लोग सूची से बाहर हो सकते हैं. हालांकि आयोग ने भरोसा दिया कि ऐसी स्थिति में सुधार और मौखिक सुनवाई का प्रावधान रहेगा.
याचिकाओं की संख्या और याचिकाकर्ता: मामले में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गईं. इनमें प्रमुख याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), आरजेडी सांसद मनोज झा, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल, सुप्रिया सुले (एनसीपी), डी राजा (भाकपा), हरिंदर सिंह मलिक (सपा), अरविंद सावंत (शिवसेना उबाठा), सरफराज अहमद (झामुमो) और दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले) शामिल हैं.
मतदाता अधिकार और समय का विवाद: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इतनी बड़ी समीक्षा प्रक्रिया विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले करना मतदाताओं के अधिकारों पर असर डाल सकता है. उन्होंने कहा कि मतदाता पहचान और नागरिकता की जांच प्रक्रिया को इतनी जल्दी और बड़े पैमाने पर लागू करना उचित नहीं है.