राज्यसभा सीट खाली, फिर भी क्यों नहीं जा रहे केजरीवाल?
नई दिल्ली
राज्यसभा में नहीं जाएंगे आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और प्रवक्ताओं ने साफ कर दिया है कि न तो वह राज्यसभा की राह लेंगे, और न ही पंजाब की राजनीति में सीएम पद की ओर बढ़ेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर केजरीवाल अगला राजनीतिक कदम क्या उठाने जा रहे हैं?
पंजाब की लुधियाना वेस्ट सीट से आप के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा ने इस्तीफा दिया था, जिसके बाद से ही यह अटकलें तेज हो गई थीं कि उनकी जगह खुद अरविंद केजरीवाल राज्यसभा जा सकते हैं। लेकिन अब पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा कुछ नहीं होगा।
2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी हार और खुद केजरीवाल का नई दिल्ली सीट से चुनाव हार जाना, उनके करियर का बड़ा झटका था। हालांकि हाल ही में पंजाब और गुजरात के उपचुनावों में आप की जीत ने एक बार फिर से पार्टी के लिए संभावनाएं खोली हैं। केजरीवाल ने गुजरात और पंजाब में पार्टी प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया और दोनों जगहों पर जीत भी मिली।
पार्टी प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा है कि “केजरीवाल न तो राज्यसभा जा रहे हैं और न ही पंजाब के सीएम बनेंगे।” इसके बाद ये सवाल और मजबूत हो गया है कि क्या अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली की बजाय राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान केंद्रित करेंगे?
कानूनी चुनौतियों के बीच केजरीवाल की रणनीति
सूत्रों की मानें तो केजरीवाल जल्द ही उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में पार्टी के विस्तार के लिए सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। उनके सामने एक तरफ पार्टी को पुनर्गठित करने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर कोर्ट में चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों से निपटना भी प्राथमिकता होगी। शराब नीति से जुड़े घोटालों और ‘शीशमहल’ जैसे विवादों ने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है।
पुराने सहयोगियों की आलोचना और नेतृत्व पर सवाल
पूर्व सहयोगियों प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने भी पार्टी की हार का जिम्मेदार केजरीवाल की कार्यशैली और ‘भ्रष्टाचार-विरोधी’ मूल्यों से भटकाव को बताया है। फिर भी हाल की जीत से यह संदेश साफ है कि केजरीवाल अभी भी राजनीति में पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुए हैं।
क्या हालिया जीत से 2027 की नींव रख रहे हैं केजरीवाल?
केजरीवाल खुद इन उपचुनावों को 2027 की तैयारी का आधार बता चुके हैं। ऐसे में फिलहाल उनका दिल्ली की राजनीति में लौटना मुश्किल लगता है। उनका फोकस पार्टी संगठन को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती देने और कानूनी मोर्चे पर रणनीति बनाने पर हो सकता है।