कथावाचकों पर हमला बना राजनीति का मुद्दा, शंकराचार्य ने अखिलेश के सम्मान पर उठाए सवाल
लखनऊ
उत्तर प्रदेश के इटावा में कथावाचकों की पिटाई का मामला अब राजनीतिक रंग ले चुका है। सपा और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। इस बीच शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस मामले में एक बड़ी टिप्पणी करते हुए मनुस्मृति को संविधान से बड़ा बताया है। उन्होंने आरक्षण प्रणाली पर भी सवाल उठाए और उसे खत्म करने की वकालत की।
एनडीटीवी से खास बातचीत में शंकराचार्य ने कहा कि एक धर्मगुरु के तौर पर वर्ण व्यवस्था की रक्षा करना उनका कर्तव्य है। उन्होंने मनुस्मृति को प्राचीन भारतीय कानून की पुस्तक बताते हुए कहा कि यह न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए संविधान जैसा है।
शंकराचार्य का मानना है कि संविधान भेदभाव करता है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में वर्ण तो चार हैं, लेकिन उनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं है सभी समान हैं और ईश्वर के अंग हैं।
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म कभी बदलता नहीं, वह हर काल में समान रहता है, यही उसकी विशेषता है। धर्म और संविधान को आमने-सामने खड़ा नहीं किया जाना चाहिए।
संविधान में दी गई धार्मिक छूट का किया हवाला
उन्होंने यह भी कहा कि वे संविधान का विरोध नहीं कर रहे हैं। अनुच्छेद 25 से 28 तक जो धार्मिक स्वतंत्रता मिली है, उसी के तहत वे अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि बाबा साहब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान ने ही उन्हें सनातन धर्म निभाने की छूट दी है।
आरएसएस पर जताई नाराजगी
आरएसएस से जुड़ाव के सवाल पर उन्होंने साफ कहा कि वे किसी संगठन के हिसाब से नहीं बोलते, बल्कि धर्म के अनुसार बात करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस का रुख हमेशा स्थिति के अनुसार बदलता रहता है।
कथावाचकों के सम्मान पर जताई आपत्ति
कथावाचकों पर हमले के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा किए गए सम्मान पर उन्होंने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि किसी पर अन्याय हो, तो सहानुभूति दी जाती है, न कि सम्मान। उन्होंने इसे राजनीतिक ड्रामा बताया। शंकराचार्य की इस बयानबाजी ने आरक्षण, धर्म और राजनीति के जटिल मुद्दों पर नई बहस को जन्म दे दिया है।